गुड़ामलानी में पैदा हुई, फिल्म निर्माता बनने का सपना देखा, अब 16 फरवरी को रिलीज हो रही है सोहनी कुमारी की फिल्म 'आखिर पलायन कब तक'

बाड़मेर के गुड़ामालानी की रहने वाली फिल्म निर्माता सोहनी कुमारी फिल्म 'आखिर पलायन कब तक' 16 फरवरी को रिलीज हो रही है. छोटी सी जगह से निकल कर फिल्म निर्माता बनने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा है




Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के एक छोटे गांव में ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी एक बेटी को मुंबई जैसे महानगर भेजना और उसका फिल्म निर्माता का सपना देखना और फिल्म बनाकर रिलीज तक पहुंचाना किसी सपने से कम नहीं है. बाड़मेर अभी भी पिछड़ा इलाका है यहां पर छोटी उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है. लेकिन बाड़मेर के छोटे से गांव मोखवा जिसकी आबादी मुश्किल से 2 हजार है. इस गांव की बेटी सोहनी कुमारी ने ये कर दिखाया है. 16 फरवरी को सोहनी द्वारा बनाई गई फिल्म 'आखिर पलायन कब तक' सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

9 साल के संघर्ष के बाद मिली सफलता 
सोहनी कुमारी ने अपने फिल्म निर्माता बनने का सपना पूरा कर दिखाया है. सोहनी बताती हैं कि, ये सफर आसान नहीं रहा है. मन में कुछ बड़ा करने का सपना था, लेकिन करना क्या है कभी सोचा नहीं था. इसी उधेड़बुन में वो जोधपुर और जयपुर जैसे राजस्थान के बड़े शहरों में गईं. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. जिसके बाद मायानगरी मुंबई का रुख किया और 9 साल के संघर्ष के बाद आखिर फिल्म निर्माता बनने का सपना पूरा हुआ. सोहनी का कहना है कि अगर वो फिल्म लाइन में सफल रह रहती हैं तो वो सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाती रहेंगी.

बचपन में उठ गया था सर से पिता का साया 
सोहनी के सर से पिता का साया जब वो छोटी थी तभी उठ गया था. पूरे परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी सोहनी की मां गवरी देवी पर आ गई थी. सोहनी की मां बताती हैं कि, सोहनी समेत घर में 3 बेटी और 2 बेटे हैं. ऐसे में बच्चों को पढ़ाना और उनका पालन पोषण करना मुश्किल हो रहा था, उसकी कोशिश थी कि बच्चे पढ़-लिख कर लायक बन जाएं. इसलिए उसने खूब मेहनत की ओर बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजा.

मां ने किया सपोर्ट 
सोहनी का सपना कुछ बड़ा करना था उसे बचपन ही से फिल्म लाइन में जाना था उसने 12वीं के बाद पढ़ाई मुंबई जाने की इच्छा जताई उसकी लगन को देखते हुए मां गवरी देवी ने उसे मुंबई भेज दिया. गवरी कहती हैं, उसे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था उसी का नतीजा है कि आज उसकी बेटी ने संघर्ष करते हुए यह मुकाम हासिल किया है. 



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