बाड़मेर। यह तो शुरूआत है, सफर बहुत लम्बा है...

बाड़मेर। बीते तीन वर्ष से तीन मुस्लिम बहनों के लिए हर दिवस शिक्षक दिवस है। इन सगी बहनों ने अपनी दिनचर्या का एक-एक पल बालिका शिक्षा को समर्पित कर रखा है, वह भी नि:शुल्क। बाड़मेर जिले के दूरस्थ गांव गोरामाणियों की ढाणी नगर में बने बालिका मदरसे में पढ़ रही करीब एक सौ अल्पसंख्यक बालिकाएं ही इनका परिवार है।

प्राथमिक स्तर के आवासीय मदरसे में शिक्षा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति विशेष्ा अलख जगाई जा रही है। शिक्षिका बहनों ने एक-एक बालिका को एक पौधे के संरक्षण व संवर्द्धन का दायित्व सौंप रखा है। इसके लिए बाकायदा बालिकाओं को पौधों पर हाथ रखकर इनके विकास व सुरक्षा की शपथ दिलाई गई है।

यूं बढ़ी इस डगर परमूलत:

गोरामाणियों की ढाणी नगर निवासी अब्दरूफ वष्ााüें पहले रोजगार की तलाश में गुजरात के गांधीधाम में जाकर बस गए। वहां पर उनका आयुर्वेद दवाओं का कारोबार चल पड़ा। अब्दरूफ ने अपनी तीनों पुत्रियों जैनब बानो, फातिमा बानो, हमीदा बानो को जामनगर जिले के एक मदरसे से आलीमा की डिग्री तक शिक्षा दिलाई। अपनी पुत्रियों के पढ़ लिख जाने के बाद उन्हें लगा कि यही काम वे मूल गांव में क्षेत्र की अन्य बालिकाओं के लिए कर सकते हैं। पिता अपनी इच्छा से पुत्रियों को अवगत कराया और तीन वष्ाü पहले गांव में आवासीय बालिका मदरसा स्थापित किया। इस मदरसे को मदरसा बोर्ड से मान्यता मिली। तब से इस मदरसे में तीनों बहनें नि:शुल्क सेवाएं देते हुए बालिकाओं को शिक्षित कर रही हंंै। मदरसे में पढ़ रही बालिकाओं के आवास व भोजन इत्यादि का खर्च अब्दुरूफ वहन कर रहे हैं। पिता की इच्छा पर तीनों पुत्रियां शिक्षा को समर्पित हो गई है। 

शिक्षिका के रूप में याद करें

जैनब, फातिमा व हामिदा का कहना है कि अभी तो यह शुरूआत है, मदरसा शुरू हुए तीन वष्ाü ही हुए हैं, सफर बहुत लम्बा है। वे कहती है कि अल्पसंख्यक समुदाय में बालिका शिक्षा को लेकर कई बाधाएं हैं। मदरसे में बालिकाएं लाने के दौरान उन्हें कई अनुभवों से गुजरना पड़ा। उनका सपना है कि वे शिक्षिका के रूप में अपने काम को उस ऊंचाई तक ले जाए कि उन्हें शिक्षिका के रूप में याद किया जाए।

शिक्षिकाओं के साथ प्रेरक भी तीनों बहनें शिक्षिका होने के साथ-साथ अल्पसंख्यक बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित कर रही है। आने वाले समय में यह मदरसा अल्पसंख्यक बालिका शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिमी राजस्थान में मील का पत्थर साबित हो सकता है। -बलदेवसिंह, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बाड़मेर

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