दिल्ली की पांच सितारा कल्चर से परे इस रेड लाइट एरिया में कुछ खास अंदाज में सेलिब्रेट होता है नववर्ष

बहुत से लोग इसे दिलवालों की दिल्ली भी कहते हैं। बात नए साल की हो रही है, तो उसे सेलिब्रेट करने के भी कई अंदाज हैं। सेलिब्रेशन के लिए पहला नाम आता है दिल्ली के दिल यानी कनॉट प्लेस का। एनसीआर के विभिन्न इलाकों से लोग लुटियन के पांच सितारा कल्चर में नववर्ष मनाने आते हैं। जमकर मस्ती और हुड़दंग होता है। दक्षिणी दिल्ली में बने कई फार्महाउस भी पांच सितारा कल्चर जैसा धमाल पेश करने लगे हैं। इन सबसे परे और दिल्ली में एक जगह ऐसी भी है, जहां नववर्ष मनाने का अंदाज बिल्कुल निराला है।

शोर शराबा यहां भी है, पुलिस है और नववर्ष सेलिब्रेट करने वालों की भीड़ है। यह भीड़ एनसीआर के कई जिलों की है। लुटियन दिल्ली की पांच सितार कल्चर से परे जीबी रोड स्थित इस रेड लाइट एरिया में नववर्ष जमकर सेलिब्रेट होता है।
कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है तैयारी
यहां की हकीकत जानने के लिए कई कोठों पर मौजूद महिलाओं से बातचीत की गई। कोठा नंबर-54 की संचालिका रेहाना (बदला हुआ नाम) का कहना है कि ठीक है हमारा ये इलाका बदनाम कहा जाता है। इस पर बात करने का कोई औचित्य भी नहीं है। आपने नववर्ष के बारे में पूछा है तो बता देते हैं। नववर्ष का जश्न तो हमारे यहां भी जमकर होता है। हमारी जगह होटल नहीं है, न एक सितारा है और न पांच सितारा। बस यहां तो कोठे हैं जो हम सबका पेट भरते हैं। 31 दिसंबर को यहां लोगों की भारी भीड़ रहती है। इसके लिए हम दो तीन दिन पहले से ही तैयारी शुरु कर देते हैं।
यूपी, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा के अलावा दिल्ली से सैंकड़ों लोग यहां आते हैं। कई जगहों से युवाओं के समूह आते हैं। वे पहले से ही फोन पर अपनी बुकिंग करा लेते हैं। समय और पैसा, ये सब पहले से ही तय हो जाता है। जब वे यहां पहुंचते हैं, तो उनसे तय सौदे के मुताबिक पैसा ले लिया जाता है ।उसके बाद ही उन्हें कोठे में एंट्री मिलती है।
बाहर से बुलाते हैं वर्कर
सेक्स वर्कर कमोलिका (काल्पनिक नाम) बताती हैं कि साल में यह एक ही दिन होता है, जब जीबी रोड के कोठों पर सबसे अधिक भीड़ रहती है। यहां तक कि पुलिस बंदोबस्त कराना पड़ता है। कई कोठों पर पहले से ही बुकिंग होती है, तो इससे हमें यह अंदाजा लग जाता है कि नववर्ष वाली रात कितने ग्राहक आएंगे। इस दिन बहुत से ग्राहक तो सीधे चले आते हैं, ऐसे में सेक्स वर्कर की डिमांड बढ़ना लाजमी है। इसके लिए पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और यूपी सहित कई दूसरे राज्यों से परिचित वर्कर को यहां बुला लिया जाता है।
उनके आने जाने का किराया और रहने का खर्च कोठा संचालिका को वहन करना पड़ता है। पहले अधिकांश कोठों पर मुजरा भी होता था, लेकिन अब वह परंपरा खत्म होने की राह पर है। मुश्किल से दो-चार कोठों पर ही मुजरा होता है, बाकी जगह तो बस...। नववर्ष पर शराब पीकर बहुत से लोग यहां आ जाते हैं। उनके साथ कहासुनी होती है। इसी चक्कर में कई बार पुलिस भी बुलानी पड़ती है।
आठ बजे हो उठते हैं गुलजार
अन्य दिनों में भले ही नौ बजे के आसपास धंधा शुरू होता है, लेकिन साल के अंतिम दिन यहां आठ बजे या उससे पहले ही जश्न का माहौल बन जाता है। कोठों की सीढ़ियों पर लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हमें कुछ अतिरिक्त लोग रखने पड़ते हैं। कोठा नंबर 62 पर काम करने वाली शहनाज (काल्पनिक नाम) के अनुसार, यहां नववर्ष का जश्न ऐसा होता है कि पुलिस को जीबी रोड के दोनों ओर बेरिकेड लगाकर लोगों की भीड़ रोकनी पड़ती है। रात दस बजे के बाद तो यहां पांव रखने की जगह नहीं बचती।

रात को सात बजे के बाद यहां ग्राहक आना शुरू होते हैं और आठ बजे तक यह रेड लाइट एरिया गुलजार हो उठता है। रात को दो-तीन बजे तक यहां सैंकड़ों लोग आ जाते हैं। एक कोठे पर कितने लोग आते हैं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, इसका सही अंदाजा तो नहीं बता सकती, लेकिन दो सौ से ज्यादा ही आते हैं। यदि समूह में युवा आ रहे हैं तो फिर सही संख्या का अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो जाता है।

Download Amar Ujala App for Breaking News in Hindi & Live Updates. https://www.amarujala.com/channels/downloads?tm_source=text_share

Post a Comment

और नया पुराने