युवाओं में मंहगे उपहारों की बढ़ती ललक

कालेज में युवाओं की मस्ती। बस पूछिए मत। पढ़ाई के दौरान दोस्ती और प्यार तो अब आम बात हो गई है। अगर आपने किसी को मित्र बना ही लिया है तो उपहारों का लेन-देन तो शुरू हो ही चुका होगा। फिर प्यार में उपहार की कीमत कोई मायने नहीं रखती। देसी और बहुराष्टÑीय कंपनियां इस हकीकत को अच्छी तरह समझ चुकी हैं। उन्होंने महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक बाजार का मायाजाल बुन डाला है। बाजार की चकाचौंध से प्रभावित आज के युवा जेब की परवाह कि, बिना साथी को उपहार देना चाहते हैं।
दरअसल उपहार के पीछे कोमल भावनाएं गुम हो गई हैं। अब युवा उपहार देते समय अपनी आर्थिक ताकत और प्रभुत्व प्रदर्शन करते है। लेकिन क्या सिर्फ उपहार से ही तय होता है कि कोई आपसे कितना प्यार करता है? जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह या फिर प्यार जताने का कोई भी मौका, प्रियजन हमेशा से ही सामर्थ्य अनुसार उपहार देते आए हैं। अगर बदलते दौर के साथ युवजनों में भी ट्रेंड बदला है। दरअसल उपहार अब भावनाएं जताने के पर्याय बन गए हैं।

किशोर अवस्था में उपहारों को लेकर लड़के मनोवैज्ञानिक दबाव में रहते हैं। खासतौर से जब किसी लड़की को उसके जन्मदिन या किसी और मौके पर कोई भेंट देनी हो। फू ल देना तो आज भी चलन में है मगर इसके साथ और क्या दें इसको लेकर उनके मन में उधेड़बुन चलती रहती है। क्योंकि उनको लगता है सिर्फ फूल देना ही काफ ी नहीं। एक स्कूल के छात्र रोहित ने कहा कि पिछले वैलेंटाइन डे पर मैंने अपनी गर्लर्फे्रं ड को उपहार देने के लिए महीने भर की पूरी पाकेट मनी खर्च कर दी थी।
एक कालेज छात्र अमित ने कहा कि मैं अपनी महिला मित्र को जन्मदिन पर टैडी बियर जैसा कुछ देना चाहता था मगर लगा कि इसके बजाय सोने का हार देना ज्यादा अच्छा रहेगा। इसीलिए वही खरीद कर दे दिया। यह अलग बात है कि इस पर पहले के बचाए काफ ी रुपए खर्च हो गए, मगर प्यार से बढ़ कर यह कुछ भी नहीं है।
दरअसल कंपनियों ने बाजार में उपहारों की इतनी रेंज उतार दी है कि अब तय करना मुश्किल है कि खास मौकों पर क्या दिया जाए। हरेक की जेब के हिसाब से हर अवसर के लिए उपहार बाजार में उपलब्ध है। रोहिणी स्थित एक निजी प्रबंध संस्थान के एक छात्र विनीत ने बताया कि बाजार में इतने उपहार है कि क्या खरीदें, यह फैसला करना मुश्किल हो जाता है। सस्ता उपहार देना अच्छा नहीं लगता लिहाजा कई बार महंगे उपहार खरीद चुका हूं। कई युवा भ्रम में रहते हैं। उन्हें लगता है कि महंगे उपहार की ही कद्र होती है। मगर इनमें कुछ अपवाद भी होते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि दिखावे के कारण महंगे उपहार खरीदने की युवाओं में होड़ लगी रहती है। बेहतर तो यह है कि मित्र को महंगा उपहार देने की बजाय उसे ऐसी चीज दी जाए जो उसके काम की बजाय उसे ऐसी चीज दी जाए जो उसके काम आए जैसे उसकी पसंद के जूते या सैंडल या फिर कोई अच्छी सी परफ्यूम। गिफ्ट वाउचर भी दिए जा सकते हैं। किसी बड़े रेस्तरां में डिनर के बजाय कोई अच्छा पर्स दे दें तो वह कहीं ज्यादा बेहतर होगा। महंगे उपहार दे ही रहे हैं, तो वे ऐसे होने चाहिए जो दोस्त के उपयोग में आए, वरना ऐसी चीज का क्या फायदा जिसमें आपके पैसे भी खर्च हो और वह घर के किसी कोने में या मेज की दराज में पड़ा रहा जाए।

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