बाड़मेर। कारोबार बनी मनरेगा, सरपंचों की गड़बडियां

बाड़मेर। महात्मा नरेगा योजना की परतें चुनाव नजदीक आने के साथ उधड़ने लगी है। गांवों में पंचायती राज की राजनीति गर्मा गई हैऔर अब कई मौजूदा सरपंचों की गड़बडियां उजागर होने लगी है। इसी के साथ उन कार्मिको की पोलपट्टी भी सामने आ रही हैजो मनरेगा को कारोबार बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए है।

रिश्तेदारों के नाम खरीद ली मशीनरी

मनरेगा योजना आने के बाद जिले के कई कार्मिकों ने अपने रिश्तेदारों के नाम ट्रैक्टर, जेसीबी और अन्य मशीनरी उपकरण खरीद लिए है। वे खुद ही ठेकेदार बने हुए हैऔर रिश्तेदारों के नाम से चल रही फर्मो से मनरेगा में कार्य हो रहा है।

उम्र का नहीं हिसाब

सौ साल की उम्र में व्यक्ति के काम करने की बात गले नहीं उतरती लेकिन बाड़मेर में यह कमाल हो रहा है। मनरेगा में सैकड़ों मजदूरों की उम्र सौ साल से ऊपर दर्शा कर उनको मजदूरी करते हुए दिखाया गया है।

कहीं विद्यार्थी तो कहीं बाहर गए लोग

शिकायतों में सर्वाधिक मामले उन लोगों के आ रह है जो मध्यप्रदेश, गुजरात व अन्यत्र मजदूरी को गए हुए है। उनके नाम मस्टरोल चल रहे है। इसके अलावा विद्यार्थियों को भी मनरेगा में कार्य पर लगाने के मामले सामने आए है।

मृतक भी काम पर

शिव तहसील के कई गांवों मे मृतकों के भी नाम दर्ज कर मजदूरी देने के मामलों की शिकायत हुई। जांच इन मामलों में भी हुई लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हो पाया।

जांच तो दूर जवाब भी नहीं

मनरेगा में मिल रही शिकायतें विकास अधिकारी या मनरेगा में कार्यरत अभियंताओं के पास पहुंच रही है। यहां से निष्पक्ष जांच रिपोर्ट की बजाय लंबे समय तक कलक्टर और मुख्य कार्यकारी अधिकारी तक को जवाब नहीं दिया जाता है। हाल ही में विकास अधिकारी बाड़मेर की ओर से करीब पांच माह तक एक मामले में वसूली नहीं करना इसका ताजा उदाहरण है।

केस एकझण

कली में दो सौ से अधिक ग्रामीणों का प्र्रदर्शन। आरोप लगाया कि कार्मिकों ने श्रमिकों की राशि का भुगतान उठा लिया। जांच जिला कलक्टर और जिला परिषद के पास लंबित।

केस दो

असाड़ी मे भी ग्रामीणों ने ऎसा ही आरोप लगाया तो हरकत में आईजिला परिषद ने हाथों हाथ श्रमिको को राशि का वितरण मौखिक आदेशों पर करवाया और मामले को रफा दफा कर दिया। 

केस तीन

नांद, बोला गांवों में विभिन्न अनियमितताओं में करीब चालीस लाख की वसूली के आदेश और ऑडिट पैरा भी बना दिया, लेकिन कार्मिकों पर कोई असर नहीं। वसूली महिनों से बकाया।

केस चार

धारासर में बनी सड़क के मामले में कार्मिकों का नौकरी छोड़ देना। विकास अधिकारी का वसूली को लेकर चार महीने से नोटिस के बाद भी जवाब नहीं देना और जिला परिषद की और से ढिलाई।

केस पांच

लगभग हर ग्राम पंचायत में सरपंच के घर के निकट सभाभवन, सड़क और अन्य निर्माण कार्य करवाना और उसकी राशि को सार्वजनिक दर्शाना।
 

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