चारपाई के पाये से बंधी जिंदगी!

 

 बालोतरा। जितेन्द्रसिंह खारवाल; दड़बेनुमा एकमात्र पड़वे में टूटी-फूटी चारपाई के पाये से बंधा बारह वर्ष का मासूम सवाराम। कद से भी बड़ा मैला कुचैला शर्ट, जो किसी लबादे से कम नहीं कहा जा सकता। फटा पुराना यह शर्ट इसके लिए पेंट व निकर की गरज भी साथ ही साध रहा है।किसी जानवर की मानिंद चारपाई के खुंटेनुमा पाये से जंजीर से बंधे सवाराम की जिंदगी इस दड़बे में सिमट कर रह गई है। चेहरे से मासूमियत टपकती है, लेकिन जानवरों की मानिंद उसकी इस दशा को देखकर हर किसी का कलेजा कांप उठता है।आम बच्चों की तरह यह मासूम भी उसके माता-पिता के कलेजे का टुकड़ा है। कौन मां-बाप अपनी औलाद को जंजीरों की जकड़न में कैद करना चाहेगी, लेकिन पचपदरा तहसील क्षेत्र के वेदरलाई गांव निवासी दम्पती बाबूराम व सीतादेवी की मजबूरी है कि कलेजे पर पत्थर रखकर उन्हें अपनी औलाद को खूंटे से बांधना पड़ा। बीते चार वर्षो से यह मासूम फटे हाल कपड़ों में खूंटे से बंधा हुआ है।उसकी इस दशा को देखकर गरीब मां-बाप खून के आंसू रोते हैं, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोईचारा भी तो नहीं है।छह संतानों में से एक सवाराम जब तीन वर्षका हुआ तो उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया। विक्षिप्त हालत के कारण उसकी अप्रिय हरकतें ज्यादा बढ़ने लगी। कभी वह सड़क पर सरपट भागने लगता तो कभी टांके या तलाई पर पहुंच जाता। जोखिम के अंदेशे तथा उसकी सुरक्षा को लेकर मां-बाप हमेशा चिंतित रहते। इस बीपीएल परिवार की हालत इतनी ज्यादा गरीब है कि महंगा इलाज करवाना आसमान से तारे तोड़कर लाने के बराबर है। जब और कोई रास्ता नजर नहीं आया तो दिल पर पत्थर रखकर उसे जंजीरों में जकड़ना पड़ा।माली हालत खराबवेदरलाई निवासी बाबूराम भील के परिवार की माली हालत काफी खस्ता है। आठ सदस्यों के इस परिवार का गुजर-बसर एकमात्र बाबूराम की मजदूरी पर चलता है।कमाई का और कोई जरिया नहीं है। सरकार ने बीपीएल का दर्जा तो दे दिया, लेकिन लाभ कुछनहीं मिल रहा।परिवार को सहारा देने तथा चूल्हे की आंच को बनाए रखने के लिए तेरह वर्षीय पुत्र भट्टाराम को भी कभी कभार मेहनत मजदूरी पर जाना पड़ रहा है।बेटे की विक्षिप्तता व गरीबी के संताप ने इस परिवार के मुखिया बाबूराम को भी बीमार बना दिया है।इलाज की दरकार विक्षिप्तता का दंश झेलते हुए जानवर की मानिंद जंजीर से जकड़े सवाराम को इलाज की दरकार है।सरकारी स्तर पर अगर उसका उपचार करवाया जाए तो उसे जंजीरों की जकड़न से आजादी मिल सकती है। वरना लोहे की ये जंजीरें इस मासूम के बचपन को तो निगल ही गई है, ताजिंदगी उसे आजाद नहीं होने देगी। सरकारी स्तर पर हो उपचार जंजीरों से बंधे सवाराम का सरकारी स्तर पर उपचार होना चाहिए। इस परिवार की हालत इतनी ज्यादा गरीब है कि ईलाज तो दूर की बात दो जून की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल बना हुआ है। उसकी मदद के लिए प्रशासन व स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आएं तो इस गरीब परिवार को राहत मिल सकती है। -गुमानसिंह वेदरलाई, सामाजिक कार्यकर्ता 

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