बाढ़ाणो हैं। प्यासों …
जिले में करीब 1000 टैंकर से पेयजल आपूर्ति प्रारंभ की गई है। इसमें 161 सीमावर्ती गांवों में व्यवस्था का दावा किया गया है। इन गांवों में दस लीटर प्रति व्यक्ति के हिसाब से पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है। छह लीटर पानी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन गर्मियों मेे केवल पीने के लिए चाहिए। शेष चार लीटर में अन्य जरूरतें पूरी होना नामुमकिन ही है। यह भी मान लिया जाए कि दस लीटर पानी में एक व्यक्ति का काम चल जाएगा तो गांवों में मवेशियो का क्या होगा? इस पर कोईविचार नहीं किया जा रहा है।
इंसानों से ज्यादा मवेशी
सीमावर्ती गांवों के लोगों के जीविकोपार्जन का मुख्य आधार पशुपालन है।ऎसे में गाय, बकरी,ऊंट व भेड़ यहां हजारों की संख्या में हैं।अकाल के कारण तालाबों में पानी नहीं है। इनके लिए भी पानी का प्रबंध अब बेरियों या फिर सरकारी जलापूर्तिके भरोसे होना है। सरकारी जलापूर्ति कहीं आठ तो कहीं दस माह से नहीं हुई है।ऎसे में पानी के लिए पशु मारे- मारे फिर रहे हैं।
पशु बचाने के लिए मजदूरी
ऊंट 25 हजार, गाय 15 हजार, भेड़ बकरी 5 हजार कीमत की है। एक परिवार के पास लाखों रूपए का पशुधन है। यही पशु इन परिवारों का पेट पालते हैं इसलिए कीमत से ज्यादा इनका रिश्ता परिवार के सदस्यों की तरह हो गया है।ऎसे में इनको बचाना इन परिवारों की प्राथमिकता है।लिहाजा मजदूरी करके मिलने वाली राशि को पशुओं के पानी पर खर्च कर रहे हैं।
पानी का प्रबंध जरूरी
एक तरफ विभाग चंद गांवों में आरओ प्लांट लगाकर पानी उपलब्ध करवाने की बात कर रहा है,दूसरी तरफ हजारों गांवों में पीने को पानी नहीं है। मनुष्य और मवेशी दोनों के लिए पेयजल उपलब्ध होना चाहिए।-हिन्दूसिंह,
गडरारोड़ पशुओं की हालत खराब
पानी के बिना पशुओं की हालत खराब है। कई बार बताया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इंसानों को भी पानी नहीं मिल रहा है।
- इशाकखां, जिला परिषद सदस्य
प्रति व्यक्ति दस लीटर
प्रति व्यक्ति दस लीटर पानी उपलब्ध करवाने के लिए टैंकर व्यवस्था की है। यह व्यवस्था अकाल में रहेगी। शिवजीराम, अधिशासी अभियंता राइजेप
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