बाड़मेर। 52 लाख आंखें "रामभरोसे"!

बाड़मेर। राज्य में सर्वाधिक नेत्रहीनों वाले जिले में भी नेत्ररोग विशेषज्ञ नहीं हो तो इससे ज्यादा संवेदनहीनता क्या हो सकती है? सीमावर्ती बाड़मेर जिले की 26 लाख आबादी को नेत्र उपचार के लिए जोधपुर या अन्यत्रजाना पड़ता है। जिले में एक भी सरकारी नेत्र चिकित्सक नहीं है।बाड़मेर में लाखों रूपए खर्च कर बनाई गई विशेष नेत्र चिकित्सा इकाई का उपयोग नहीं हो रहा है। चिकित्सा विभाग को प्रतिवर्ष मिलने वाले आंखों के ऑपरेशन के लक्ष्य भी निजी चिकित्सालयों के भरोसे हैं।

बाड़मेर जिले में सर्वाधिक नेत्रहीन हैं।

 लोकसभा चुनावों में प्रदेश में सर्वाधिक नेत्रहीनों ने मतदान भी इस जिले में किया है। प्रदेश में 6277 नेत्रहीन मतदाता सहारा लेकर वोट देने पहुंचे,इसमें बाड़मेर में 874 मतदाता थे। ब्रेल लिपि का उपयोग करने वाले नेत्रहीन मतदाताओं में प्रदेश में 198 में से 67 बाड़मेर जिले के हैं।

यह आंकड़ा दर्शाता है

 कि जिले में नेत्रहीनो की संख्या राज्य में सबसे अधिक है।ये है हकीकतराजकीय जिला जिला अस्पताल में दो नेत्ररोग विशेषज्ञ नियुक्त थे, दोनों ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं।अब एक भी चिकित्सक नहीं है। 150 बैड के बालोतरा अस्पताल में भी नेत्ररोग विशषज्ञ नहीं है।पांच साल पहले यहां नियुक्त नेत्ररोग विशेषज्ञ का तबादला हो गया था, अब कोई चिकित्सक नहीं है। जिले के ग्रामीण क्षेत्र के 17 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी नेत्ररोग विशेषज्ञ नहीं है।

होनहार भी परेशान

जिले के सांवलाराम ने नेत्रहीन होते हुए सीबीएसई बोर्ड में बारहवीं में 91 प्रतिशत अंक हासिल किए। इस विद्यार्थी को भी आगे पढ़ाई के लिए मदद की दरकार है लेकिन सरकारी सहायता के रूप में इसकी मदद नहीं हो रही है।


नहीं है चिकित्सक


 नेत्ररोग विशेषज्ञ पांच साल से नहीं है। मरीजों का उपचार नहीं हो पाता है।- डा. एन एल गुप्ता, प्रमुख चिकित्सा अधिकारी बाड़मेरकौन बनाए सरकार पर दबाव आंखों के चिकित्सक नहीं होने से मरीजों को असुविधा होती है।आंख की बीमारी तो हर साल लाखों लोगों को होती है।-डा. गणपतसिंह राठौड़, सेवानिवृत्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारीनेत्रहीनों की अन्य समस्याएं शिक्षा सुविधाजिले में नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए एक स्वयं सेवी संस्थान के माध्यम से विद्यालय संचालित हो रहा है। यह आठवीं स्तर का है। इसमें ब्रेललिपि से पढ़ाई करवाई जा रही है। यहां अच्छे नतीजे आने के बावजूद आगे की पढ़ाई के लिए पलायन करना पड़ रहा है। सर्वाधिक नेत्रहीन होने से यहां बारहवीं स्तर के सरकारी विद्यालय की दरकार है।

पेंशन पर गुजारा

नेत्रहीनों को भी अन्य पेंशनर्स की तरह सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग के माध्यम से बच्चों के लिए 250 रूपए, साठ से अधिक उम्र के लिए 500 व 75 से अधिक उम्र के वृद्धों के लिए 750 रूपए मासिक पेंशन मिलती है, जो इनके लिए गुजारे के लिए नाकाफी है।यह पेंशन भी महीनों तक नहीं मिल पाती है।रोजगार के नहीं प्रबंधनेत्रहीनों के लिए रोजगार का प्रबंध कहीं नहीं है। ऎसे कई नेत्रहीन है जिनकी उम्र तीस से चालीस के मध्य है और वे कुछ काम कर सकते हैं लेकिन इनके लिए अलग से रोजगार का प्रबंधन नहीं किया गया है।

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