सुख भरे दिन बीते रे भैया... जानें भाजपा में 75 पार के नेताओं का रिटायरमेंट प्लान

मुरली मनोहर जोशी...लालजी टंडन...फिर आडवाणी...और अब जसवंत सिंह। जिस तरह सक्रिय राजनीति में इनके कद घटाए जा रहे हैं, उससे सवाल उठता है कि क्या भाजपा में 75 पार के नेताओं के रिटायरमेंट का निष्ठुर प्लान चल रहा है?
आडवाणी- 86 साल
ऐसे किया जा रहा है दरकिनार
1. नहीं चाहते थे कि मोदी को राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल किया जाए। शर्त थी कि ऐसा करना भी पड़े तो फिर शिवराज को भी जगह मिले। लेकिन सिर्फ मोदी को लिया गया।
2. नहीं चाहते थे कि मोदी को चुनाव प्रचार प्रमुख बनाया जाए। पार्टी छोडऩे तक की धमकी दी। लेकिन गोवा में मुहर लग गई। आडवाणी ने इस्तीफे दे दिए। फिर मान भी गए।
3. चुनाव से पहले मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी नहीं बनाना चाहते थे। तर्क दिया कि कांग्रेस के खिलाफ बना माहौल ध्रुवीकरण में बदल जाएगा। लेकिन यहां भी नहीं सुनी गई।
4. गांधीनगर से चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन 4 सूचियों के बाद भी नाम नहीं आया। भोपाल से मन बनाया तो पार्टी ने मना कर दिया। अंतत: झुकना पड़ा और गांधीनगर पर मान गए।
क्या खोया
आडवाणी के इस तरह रूठने-मानने से उनकी छवि खराब हुई है। विरोधी भी कहने लगे हैं कि इस उम्र में वे सत्ता के मोह से बंध चुके हैं।
क्या पाया
उन दलों और साथियों का समर्थन जो नहीं चाहते कि मोदी पीएम बनें। चुनाव बाद नए समीकरणों का भरोसा।
संघ साथ क्यों नहीं?
आडवाणी संघ के सबसे चहेते थे, लेकिन जब से जिन्ना की मजार पर झुके, तब से संघ नाराज है। 2009 में आडवाणी नतीजे नहीं दे सके थे। इसलिए संघ चाहता था कि अब बागडोर मोदी को सौंप दी जाए।
बीते हुए पल...
अटल युग में भी पार्टी में वही होता था, जो आडवाणी चाहते थे। कोई नेता इनकी मर्जी के बिना कुछ नहीं कर सकता था। पूरी पार्टी पर एकछत्र राज।
ऑफ द रिकार्ड: नाराज चल रहे मोदी खेमे को लगता है आडवाणी पर्दे के पीछे से मोदी का खेल बिगाडऩे में लगे हैं।
मोदी के रहते किसी का सम्मान सुरक्षित नहीं
जो सलूक आडवाणी के साथ हो रहा है, वो बताता है कि मोदी के रहते किसी का सम्मान सुरक्षित नहीं है। जो अपने वरिष्ठों का सम्मान नहीं कर सकता, वो देश का सम्मान क्या करेगा? - रामगोपाल यादव, सपा


                                                      एमएम जोशी-80 साल

1. मुरली मनोहर जोशी वाराणसी से ही लडऩा चाहते थे। लेकिन मोदी की जिद के आगे वाराणसी छोडऩा पड़ा।
2. कभी पार्टी का सांस्कृतिक चेहरा रहे जोशी को कानपुर भेजा गया है। यह सीट उनके लिए खतरनाक है। अगर हारे तो राजनीति से बाहर। जीते तो मोदी लहर को क्रेडिट।

संघ साथ क्यों नहीं: 2004 में इलाहाबाद से हार गए थे। 2009 में काशी में 17 हजार वोट से जीते। यानी इनमें प्रखर हिंदुत्व का चेहरा मुर्झा गया था। जिन्ना प्रकरण के दौरान संघ के खिलाफ जाकर आडवाणी का पक्ष लिया था।
बीते हुए पल- अटल-आडवाणी के बाद तीसरे नंबर के नेता। राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। कभी संघ के बेहद प्रिय थे। मोदी कितने डरपोक हैं कि जोशीजी को अपमानित कर रहे हैं। उनकी सीट पर कब्जा जमा लिया। मोदी ऐसे ही हैं। वे सबको दरकिनार करेंगे।- अर्जुन मोढ़वाडिय़ा, कांग्रेस


                                                        जसवंत सिंह 76 साल

बाड़मेर से टिकट चाहते थे, नहीं मिल रहा। दावा है कि इन्होंने कह दिया है -टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़ूंगा।

बीते हुए पल- सबसे कद्दावर नेता। पार्टी में कद ऐसा था कि अटलजी इन्हें अपना हनुमान कहते थे। जिन्ना की तारीफ कर पार्टी से बाहर हो चुके हैं। फिर लौटे, लेकिन नेतृत्व से नाराज रहे। न केंद्र में मोदी को पसंद, न राज्य में वसुंधरा को। संघ के एजेंडे में भी फिट नहीं, लिहाजा विदाई की सूची में शामिल।


                                                   लालजी टंडन 79 साल
लखनऊ से टिकट काटकर विदाई पर मुहर। राज्यसभा में भेजने का भरोसा दिया।
1976: इंदिरा ही इंडिया, इंडिया ही इंदिरा। -देवकांत बरुआ ने कहा था 
2014: मोदी ही भाजपा, भाजपा ही मोदी -कल्याण सिंह का बयान
सोशल मीडिया की अपनी राय
भाजपा को 2 से 180 सीटों पर लाए। लेकिन आज पार्टी पसंद की एक सीट तक नहीं दे रही।
-गौतम सिद्धवाणी, भोपाल
बोए पेड़ खजूर का तो आम कहां से होय। कहावत भूल गए क्या आडवाणीजी?
-सिद्धार्थ चौधरी, रोहतक
बड़े हैं तो बड़प्पन दिखाएं, जोशी से ही सीख लेते 
आडवाणी बुजुर्ग हैं। उन्हें बड़प्पन दिखाना था। जैसे जोशी माने, वैसे ही मान जाते तो सम्मान ही बढ़ता। -गोविंद शर्मा, उदयपुर

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