बदल दिया मूल प्लान, अब बर्बाद हो किसान, तो उनकी बला से

जोधपुर। मेहसाणा से भटिंडा के बीच डाली जाने वाली गैस पाइप लाइन जोधपुर के मोगड़ा गांव की कृषिभूमि से निकालने के जेडीए के मनमानी पूर्ण आदेश के प्रति किसानों ने तीव्र रोष व्यक्त किया है। किसानों का कहना है कि मूल प्लान में खसरा नंबर 142 की भूमि है जो गोचर भूमि है। इसका प्रयोग करने से जेडीए को भूमि अवाप्त करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन जेडीए की मनमानी और निहित स्वार्थों के तहत यह लाइन मूल मार्ग से हटा कर खेतीहर किसानों की कृषि भूमि से निकालने का आदेश दिया गया है। इससे अनेक किसानों के खेत बर्बाद होंगे और किसान लाचार हो जाएंगे, बावजूद इसके जेडीए और गैस कंपनी अपनी हठधर्मिता पर ही अड़ी हुई है। ज्ञातव्य है कि जेडीए ने ट्रांसपोर्ट नगर योजना का प्रारूप प्रस्तुत करते हुए इस लाइन को खसरा नंबर 142 गांव मोगड़ा खुर्द से स्थानांतरित करने की मांग की। जिसे सक्षम अधिकारी ने जेडीए के पूर्व अध्यक्ष के दबाव में स्वीकार भी कर लिया। इससे इस लाइन को स्थानांतरित कर उपजाऊ कृषि भूमि में डालने के लिए मार्ग परिवर्तित कर दिया गया। ऐसे में मोगड़ा गैस पाइप लाइन मार्ग परिवर्तन विरोध समिति ने जन सुनवाई के दौरान तीव्र रोष जताया।

विरोध समिति का दावा
समिति के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल और सचिव भीमाराम पटेल का कहना है कि जेडीए की उक्त भूमि में से एक डीजल परिवहन की पाइप लाइन डाली जा रही है तो यह गैस पाइप लाइन क्यों नहीं डाली जा सकती। समिति के सदस्य सोनाराम पटेल ने कहा कि सरकारी भूमि में पाइप लाइन डालने से कंपनी को मुआवजा भी नहीं देना पड़ेगा। कृषक जयदेव चारण, भोलाराम, खेमाराम, केसाराम, वैनाराम, आईवीर सिंह, केलीबाई, सांवलराम, पदमाराम, कमला देवी गुप्ता, भीकाराम और लालाराम ने बताया कि जेडीए को लाइन के लिए स्वीकृति देकर योजना प्रारूप में परिवर्तन कर लेना चाहिए था, लेकिन जेडीए बेवजह हठधर्मिता पर हड़ा हुआ है।

किसानों ने प्रस्तुत की आपत्तियां
जीएसपीएल इंडिया गैसनेट लिमिटेड के समक्ष अधिकारी के समक्ष मोगड़ा खुर्द के किसानों ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि पाइप लाइन के लिए कृषि भूमि अवाप्त की जा रही है जो गैर कानूनी और न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि उपरोक्त कार्यवाही 5 अप्रैल 2013 और 13 जून 2013 के आदेशों को आधार मान कर मनमाने तरीके से की जा रही है। उक्त आदेश किसी भी रूप में भूमि अवाप्ति के लिए अधिकृत नहीं करते हैं और ना ही उस आधार पर कार्यवाही की जा सकती है। इस योजना के लिए प्रारंभ से ही कोई स्पष्ट प्लान नहीं बन सका। इस कारण प्रारंभ से ही विवाद बना हुआ है जो आज भी संदेह उत्पन्न करता है। समिति ने यह भी तर्क रखा कि 5 अप्रैल और 13 जून को आदेश पारित करने से पूर्व प्रार्थी को सुनवाई का अवसर तक नहीं दिया गया। ना लोक सूचना दी ना ही लोक सूचना का प्रकाशन करवाया।
जेडीए ने भी अन्य खसरान बाबत कोई तथ्यात्मक रिपोर्ट नहीं दी। ऐसी स्थिति में पूर्व में वर्णित योजना को स्थानांतरित करने का कोई आधार नहीं हो सकता। कंपनी ने जेडीए के प्रस्तावित नए मार्ग पर बिना सर्वे करवाए ही कार्यवाही शुरू कर दी जो किसानों का गला घोंटने के समान है। उनका यह भी तर्क है कि मूल प्लान और रिवाइंड प्लान को प्रथम दृष्टया देखने से मालूम होता है कि रिवाइंड प्लान बिना भौतिक सत्यापन किए कागजी रूप से बना दिया गया। यह रिवाइंड प्लान अत्यधिक लंबा और घुमावदार होने से भी यह योजना अतार्किक और अत्यधिक व्यय वाली है।
उधर मूल प्लान पर कंपनी सर्वे और भौतिक सत्यापन आदि की सारी कार्यवाही कर चुकी थी, बावजूद इसके पाइप लाइन का मार्ग बदलना आम आदमी की समझ से परे है। मूल प्लान राजकीय भूमि से गुजरता है जबकि रिवाइंड प्लान कृषि भूमि से निकल रहा है। इसके अलावा खसरा नंबर 142 की भूमि से उपर्युक्त पाइप लाइन नहीं निकल सकती, ऐसा कोई आदेश भी नहीं है। ऐसे में रिवाइंड प्लान पूरी तरह दोषपूर्ण है। मोगड़ा के ग्रामीण जेडीए के आदेश और कंपनी की कार्यवाही के प्रति जिला कलेक्टर के समक्ष विरोध दर्ज करवाते रहे हैं। प्रशासन किसानों को न्याय दिलवाने का आश्वासन दे चुका है, ऐसे में आखिर उपरोक्त कार्यवाही निरस्त क्यों नहीं की जा रही।

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