कांग्रेस 129 साल की हो गई

नई दिल्ली/जयपुर। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(आईएनसी) का इतिहास भारत की आजादी की महान गाथा कांग्रेस के अतीत के स्वर्णिय अध्याय को बयां करता है, जिस पार्टी का गठन देश को ब्रिटिश हुकुमत से मुक्त कराने के लिए 1885 में हुआ , बेशक इस रास्ते पर चलकर कांग्रेस ने हर कार्यकर्ता ने आंदोलनों में जीन जान लगाकर अमिट इतिहास लिखा, समूचे देश का नेतृत्व करने के लिए यह पार्टी एक आवाज, एक मंच थी, चुनाव लड़कर सत्ता हासिल करना इसका मकसद नहीं था, इसका उद्देश्य अंग्रेजों की बेडिय़ों को तोड़कर भारत में छूआछूत, जातिवाद मिटाकर सबको जीने का समान अधिकार देना था। जमींदारी प्रथा को खत्म करने इस पार्टी का बड़ा योगदान रहा है। महात्मा गांधी ने इस संगठन को 1920 में थामकर अहिंसा के रास्ते पर चले और सविनय अविज्ञा, सत्याग्रह, स्वदेशी अपनाओ जैसे तमाम कार्यक्रमों के जरिए देश एकजुटता का संदेश दिया, और महात्मा गांधी के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना,सुभाष चंद्र बोस जैसी बौद्धिक हस्तियां भी कदम से कमद मिलाकर चलीं। आजादी के बाद कांग्रेस ने नेहरू, इंदिरा और राजीव के रूप में देश ऐतिहासिक नेता देने वाली यह पार्टी मौजूदा समय में वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही है, जिसकी मौजूदा अध्यक्ष राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी हैं, उपाध्यक्ष की कमान इनके पुत्र राहुल गांधी संभाल रहे हैं।
कांग्रेस के गठन की वजह
ब्रिटिश अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम(ए.ओ. ह्यूम) ने एक सुझाव दिया कि ब्रिटिश राज के साथ शिक्षित भारतीय और राजनेताओं के लिए एक मंच हो, ह्यूम का कहना था कि इस मंच के जरिए भारतीयों का इस बात पता चल जाएगा कि ब्रिटिश शासन आपके हितों का पूरा ख्याल रखेगा। लेकिन ह्यूम की सोच के मुताबिक ब्रिटिश राज ने भारतीयों को तवज्जो नहीं दी, और ब्रिटिश राज की बढ़ती मनमानी से कांग्रेस संगठन में गुस्सा भरना शुरू हो गया, जिसकी सबसे बड़ी वजह आम हिंन्दुस्तानियों का आए दिन शारीरिक शोषण।महात्मा गांधी ने इस संगठन को 1920 में थामकर अहिंसा के रास्ते पर चले और सविनय अविज्ञा, सत्याग्रह, स्वदेशी अपनाओ जैसे तमाम कार्यक्रमों के जरिए देश एकजुटता का संदेश दिया, और महात्मा गांधी के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना,सुभाष चंद्र बोस जैसी बौद्धिक हस्तियां भी कदम से कमद मिलाकर चलीं।बंबई में स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की 28 दिसंबर,1885 को हुई, बंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृ कॉलेज में स्थापना समारोह में 72 प्रतिनिधियों के साथ व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष बनाया गया। पदाधिकारियों में ह्यूम को महासचिव की जिम्मेदारी देकर विलियम वेडरबर्न, जॉन जार्डाइन को सदस्य बनाया गया। और दूसरे सदस्यों में बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी से शामिल किया गया।
प्रांतीय चुनाव में जबरदस्त जीत
भारतीय शासन अधिनियम के तहत कांग्रेस ने 1937 में 11 प्रांतीय चुनावों में 7 प्रांतों में जीत दर्ज की, लेकिन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने निर्वाचित प्रतिनिधयों से परामर्श किए बिना द्वितीय विश्वयुद्ध की घोषणा कर दी, इस बात से नाराज होकर कांग्रेस ने मंत्रालयों ने इस्तीफा देकर विरोध दर्ज कराया था। कांग्रेस की कमान संभालकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग छेडऩे वाले महात्मा गांधी के साथ काम करने वालों की लंबी फेहरिस्त थी, जिनमें नरम और गरम दल दोनों के सदस्य थे। इनमें सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, अब्दुल खान गफ्फार, मौलाना आजाद सहित तमाम बुद्धिमानी और सक्रिय कार्यकताओं का जीवन समर्पित रहा।आंदोलनों के जरिए कांग्रेस ने बनाई जगह
देश की आजादी के लिए लंबी लड़ाई लडऩे वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तमाम आंदोलनों को अपने हाथ में लिया, 1920 में महात्मा गांधी ने अहिंंसा आंदोलन का आगाज किया, अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ाई का आगाज किया, तो वहीं सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह जैसे क्रंतिकारियों ने आजादी के लिए सशस्त्र कांति के रास्ते पर चले। इन क्रांतियों के साथ ही साहित्य, कविताओं के जरिए राजनीतिक और सामाजिक चेतना फैलाने का काम किया गया , रवीन्द्र टैगोर, काजी नजरूल और सरोजनी नायडू ने इस जिम्मेद ारी को बखूबी
अंजाम दिया।

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