बाड़मेर।''पूनम सिंह राठौड़'' बॉर्डर की हिफाजत का जिम्मा संभाल रही बीएसएफ पर डीजल में
कटौती की मार भारी पड़ रही है। इसके चलते सीमा पर चौकसी में न सिर्फ दिक्कतें पेश आ
रही है, बल्कि गश्त के लिए भी ऊंटों पर निर्भरता बढ़ रही है। इसके साथ ही बल के
जवान और भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।
बीएसएफ एहतियात के तौर पर ईंधन बचत का फॉर्मूला पहले से अपना रही है। गाड़ी को
इमरजेंसी में ही बीओपी पर भेजते हैं, छोटे मोटे कार्य के लिए ऊंट की सवारी से ही
काम निपटाते हैं। इतना ही नहीं ड्यूटी कर रहे जवानों को बीओपी तक पहुंचाने के लिए
भी गाड़ी की सुविधा नहीं मिल रही, वे भी पंद्रह किलो वजन उठाए रोजाना पैदल ही चलते
हैं।
ऊंटों से पहुंचाते हैं सामग्री
ईंधन की बचत के लिए बीएसएफ पहले से सतर्कता बरत रही है। सरहद पर बनी बीओपी पर
24 घंटे एक-एक जवान तैनात रहता है। एक हजार मीटर की परिधि में बीओपी स्थित है। यहां
ड्यूटी कर रहे जवान को पानी या अन्य सामग्री की अचानक जरूरत पड़ने पर पहले कंट्रोल
रूम सूचना दे दी जाती है। इसके बाद मुख्यालय से एक जवान ऊंट पर सवार होकर सामग्री
पहुंचाने रवाना होता है। करीब एक घंटे का सफर तय करने के बाद बीओपी पर सामग्री
पहुंच पाती है।
रोजाना छह किमी पैदल सफर
भारत-पाक सीमा पर गडरा फॉर्वर्ड से जवानों को संबंधित बीओपी पर ड्यूटी देनी
पड़ती है। डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित बीओपी तक जवान को पैदल ही पहुंचना पड़ता है। एक
जवान को 24 घंटे में से छह-छह घंटे की दो बार डयूटी करनी होती है। ऐसे में उसे
रोजाना छह किलोमीटर पैदल सफर तय करना पड़ता है। 50 डिग्री तापमान में तपते रेत के
धोरों पर पैदल चलना कितना मुश्किल होता है, इसकी कल्पना की जा सकती है।
इनका कहना है
'बीएसएफ को दिए जाने वाले ईंधन में 37 फीसदी कटौती कर दी गई है। हालांकि पहले
से ईंधन बचत के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अधिक कटौती करने से वाहनों के संचालन
में कुछ दिक्कतें आ रही हैं। बावजूद इसके बॉर्डर पर कुछ कार्य ऊंटों से निपटाए जाते
हैं।'
मुनीष त्रिघाटिया, एसी बीएसएफ 99वीं बटालियन गडरारोड
नींबू पानी के सहारे 50 डिग्री में भी सीमा पर मुस्तैद हैं जवान
बाड़मेर जिले की पाकिस्तान से लगती सीमा पर गर्मी के कहर बढ़ता जा रहा है।
यहां सरहद पर पारा 50 डिग्री को पारकर चुका था। यहां पर चौकी में लगे तापमापी में
पारा 50 डिग्री को दर्शा रहा है।
आसमां से बरसती आग और जमीन रेत भट्टी बन भभकने लगी, इसके बावजूद यहां सीमा पर चौकसी करने वाले जवानों के जोश और जज्बे में कोई कमी नहीं है। नींबू पानी और पानी से भीगे पटके के सहारे बीएसएफ के जवान घंटों तक मुस्तैदी से पहरा देते हैं, जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता। गर्मी के कहर उनके हौसलों में कोई कमी नहीं आ रही। भास्कर टीम ने रविवार को बॉर्डर पर भीषण गर्मी में मुस्तैदी से ड्यूटी कर रहे जवानों के मर्म को साझा किया।
आसमां से बरसती आग और जमीन रेत भट्टी बन भभकने लगी, इसके बावजूद यहां सीमा पर चौकसी करने वाले जवानों के जोश और जज्बे में कोई कमी नहीं है। नींबू पानी और पानी से भीगे पटके के सहारे बीएसएफ के जवान घंटों तक मुस्तैदी से पहरा देते हैं, जिसमें परिंदा भी पर नहीं मार सकता। गर्मी के कहर उनके हौसलों में कोई कमी नहीं आ रही। भास्कर टीम ने रविवार को बॉर्डर पर भीषण गर्मी में मुस्तैदी से ड्यूटी कर रहे जवानों के मर्म को साझा किया।
पांच लीटर पानी और नींबू का आसरा
सरहद पर तैनात जवान को ड्यूटी के दौरान जरीकेन में पांच लीटर पानी मिलता है। बेस कैंप से रवाना होते समय ठंडा पानी लेकर निकलते हैं, लेकिन बीओपी तक पहुंचते यह उबलने की स्थिति में आ जाता है। जवान उसे कपड़े से ढककर जतन से रखते हैं। पानी के साथ नींबू-पानी का पाउच दिया जाता है जो संजीवनी का काम करता है।
सरहद पर तैनात जवान को ड्यूटी के दौरान जरीकेन में पांच लीटर पानी मिलता है। बेस कैंप से रवाना होते समय ठंडा पानी लेकर निकलते हैं, लेकिन बीओपी तक पहुंचते यह उबलने की स्थिति में आ जाता है। जवान उसे कपड़े से ढककर जतन से रखते हैं। पानी के साथ नींबू-पानी का पाउच दिया जाता है जो संजीवनी का काम करता है।
पारा 50 के पार
सीमा पर चौकी पर लगे तापमापी में पारा 50 के अंक को छू चुका है, इसके बाद तापमापी में अंक नहीं होते। तापमापी की हलचल को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि तापमान इससे कहीं अधिक है। इस भीषण गर्मी में भी बीएसएफ के जवान चौकसी में कोई कोताही नहीं बरत रहे। वे न सिर्फ टीन की चद्दरों से बनाई बीओपी से नजर रखते हैं, बल्कि तपती रेत में गश्त करने में भी कोई गुरेज नहीं करते।
सीमा पर चौकी पर लगे तापमापी में पारा 50 के अंक को छू चुका है, इसके बाद तापमापी में अंक नहीं होते। तापमापी की हलचल को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि तापमान इससे कहीं अधिक है। इस भीषण गर्मी में भी बीएसएफ के जवान चौकसी में कोई कोताही नहीं बरत रहे। वे न सिर्फ टीन की चद्दरों से बनाई बीओपी से नजर रखते हैं, बल्कि तपती रेत में गश्त करने में भी कोई गुरेज नहीं करते।
सिर्फ छह घंटे का विश्राम
गडरा फॉरवर्ड में बीएसएफ की 99वीं बटालियन के एएसआई देवेन बोरा बताते है कि इस मौसम में सरहद पर ड्यूटी जंग से कम नहीं है, 24 घंटे में सिर्फ छह घंटे ही आराम करते है। दो शिफ्ट में छह-छह घंटे ड्यूटी करते हैं।
गडरा फॉरवर्ड में बीएसएफ की 99वीं बटालियन के एएसआई देवेन बोरा बताते है कि इस मौसम में सरहद पर ड्यूटी जंग से कम नहीं है, 24 घंटे में सिर्फ छह घंटे ही आराम करते है। दो शिफ्ट में छह-छह घंटे ड्यूटी करते हैं।
उन्होंने बताया कि यहां सबसे बड़ी पानी की समस्या है, पांच लीटर पानी से छह
घंटे गुजारने पड़ते है। मुख्यालय से बीओपी जाने के लिए डेढ़ से दो किलोमीटर का सफर
पैदल जाना पड़ता है। उन्होंने कुछ और कटौती का भी जिक्र किया।
पर्यावरण का संरक्षण
पांच लीटर में से भी जवान पानी बचाकर अपने लगाए पेड़ों को सींचते हैं। इस
प्रकार वे रेगिस्तान में पौधारोपण करके पर्यावरण संरक्षण के अभियान को भी जारी रखते
हैं। इतना ही नहीं पक्षियों के लिए जवानों ने परिंडे लगा रखे हैं। इतना नहीं कंपनी
बेस कैंप में आसपास के गांवों के चरने के लिए आने वाले पशुओं को दिन में दो बार
पानी भी पिलाते हैं।
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