शहर की लापरवाही ने ली 2500 गायों की जान

जयपुर। गुलाबी नगर के लोगों की लापरवाही ने एक साल में करीब ढाई हजार गायों की जान ले ली। कड़वा है, लेकिन सच है कि इन गायों की मौत हुई यहां-वहां पड़ी पॉलीथिन खाने से।

पॉलीथिन पर राज्यभर में प्रतिबंध के बावजूद राजधानी में बैठे कर्ता-धर्ता इसका पालन कराने में नाकाम रहे, शहर ने भी अपनी आदत नहीं सुधारी। ऎसे में इन मूक जानवरों को इंसानी गलतियों की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। पत्रिका संवाददाता ने नगर निगम की हिंगोनिया गोशाला का जायजा लिया तो सामने आई यह चौंकाने वाली सच्चाई।
पेट से निकली 60 किलो पॉलीथिन
गोशाला के पॉलीक्लीनिक के उपनिदेशक डॉ. शिवजीराम मीणा के अनुसार पिछले एक साल में 66 बीमार गायों को ऑपरेशन कर बचा लिया गया, लेकिन पॉलीथिन खाने से करीब ढाई हजार की मौत हो गई। क्लीनिक में कुछ दिन पहले हुए एक ऑपरेशन में डॉक्टरों ने गाय के पेट से 60 किलो पॉलीथिन निकाली है। गोशाला के लिए हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त कमिश्नर वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा का कहना है कि पिछले एक साल में भूख से मरने वाली गायों की संख्या करीब छह हजार रही, जिसमें 70 फीसदी मौत पॉलीथिन के कारण हुईं।
आमाशय में जमने पर तिल-तिल मरती हैं
पॉलीथिन खाने के बाद गाय तिल-तिल कर मरती है। चिकित्सकों के अनुसार एक वयस्क गाय प्रतिदिन 6 से 8 किलो चारा खाती है। सड़क पर आवारा घूमने वाली गाय भोजन की तलाश में कचरे के साथ पॉलीथिन भी खा जाती है। यह पॉलीथिन इनके आमाशय में जाकर अटक जाती हैं। यह न तो पचती है और न ही गलती है, बल्कि आमाशय में स्थाई रूप से जगह बना लेती है। दिनों-दिन गाय पॉलीथिन खाती रहती है और उसी अनुपात में उसकी भोजना क्षमता घटती जाती है। धीरे-धीरे गाय खाना-पीना छोड़ देती है और काल का ग्रास बन जाती है।
अगस्त 2010 में लगी थी रोक
प्रदेश में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने एक अगस्त 2010 से पॉलीथिन बैग्स पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया था। इसका पालन जिला कलक्टरों और प्रदुषण नियंत्रण मंडल के सभी क्षेत्रीय अधिकारियों को कराना था। शुरूआत में तो सख्ती दिखाई गई, लेकिन समय के साथ-साथ जिम्मेदार अधिकारी सुस्त पड़ गए।

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