चुनाव डायरी : कहां गए भाजपा के 'हनुमान'?

Election diary: Where are 'Hanumans' of BJP
नई दि्ल्ली: जसवंत सिंह और हरिन पाठक दोनों में एक समानता है। दोनों हनुमान कहे जाते हैं। जसवंत सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी के हनुमान तो हरिन पाठक लाल कृष्ण आडवाणी के हनुमान। एनडीए की छह साल की सरकार में हर संकट में वाजपेयी को जसवंत सिंह याद आते थे। इसी तरह, आडवाणी की गांधीनगर सीट के सारे काम पास की अहमदाबाद पूर्व सीट से सांसद हरिन पाठक करते थे। लेकिन इस लोक सभा चुनाव में जसवंत सिंह का टिकट कट चुका है और हरिन पाठक के सिर पर तलवार लटक रही है।

आडवाणी के रूठने के पीछे माना गया कि वो पार्टी पर पाठक के टिकट के लिए दबाव बना रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक राजनाथ सिंह ने आडवाणी से कहा कि वो गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मान जाएं। जहां तक पाठक के टिकट का सवाल है, पार्टी इस पर विचार करेगी। लेकिन नरेंद्र मोदी, हरिन पाठक के टिकट के लिए तैयार नहीं हैं। 2009 के चुनाव में भी मोदी पाठक का टिकट काटने पर अड़ गए थे। तब भी आडवाणी की बेहद सख्ती के बाद ही उन्हें टिकट मिल पाया था।

लेकिन दूसरे हनुमान जसवंत सिंह के लिए पार्टी में इस तरह का दबाव डालने वाले नेता अब कोई नहीं है, यही वजह रही कि बगावत की धमकी देने के बावजूद बीजेपी ने बाड़मेर से हाल ही में कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम चौधरी को टिकट दे दिया। वसुंधरा ने इस बहाने एक तीर से दो निशाने साध लिए। एक तो राज्य की राजनीति में जसवंत के रूप में सत्ता का दूसरा केंद्र बनने से रोक दिया, दूसरा जाट वोटों को साथ लेने के लिए सोनाराम चौधरी के रूप में एक बड़ा संदेश दे दिया।

ये वही जसवंत सिंह हैं जिन्हें अपनी तेरह दिन की सरकार में शामिल करने के मुद्दे पर अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस के सामने आ गए थे। पोखरण में परमाणु परीक्षणों के बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों पर दुनिया भर में भारत का पक्ष रखने के लिए वाजपेयी ने उन्हें ही आगे किया था। संकट घरेलू मोर्चे पर हो या विदेशी मोर्चे पर, जसवंत सिंह ही आगे आया करते थे। कंधार में विमान अपहरण के बाद बंधक यात्रियों को छुड़वाने के बदले आतंकवादियों को अपने साथ विमान में ले जाने पर जसवंत सिंह की तीखी आलोचना हुई पर उन्होंने इसे सह लिया।

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